________________
८ 1
रत्नाकर पच्चीसी भावनुवाद रूप बीनती स्तवन
श्रेय' श्री रति गेह छो जी, नर सुर पति नत पाय । सर्व जण अतिसय निधीजी, जय उपयोगि प्राय || १ ||
3
जगत गुरु वीनतड़ी अवधार | जग ग्राधार कृपामयी जी, शव विकार* गद टालवा जी,
जागा भरणी जे भाखवु जी, पिरणं अशुद्धता आपरणी जी,
श्रीमद देवचन्द्र पद्य पीयूष
निष्कारण जग बंधु । वैध अछो गुगा सिंधु || २ || || ते तो भोलिम भाव । वीनवियै लहि दाव ||३|| ज. ॥
मावीत्र आगल बालके जी, स्युं लीलै न कहाय । साधु पश्चाताप थी जी, निज आशय कहिवाय ||४|| ज ||
दान शील तप भावना जी, जिन प्राणायै न की । वृथा भम्यो भव सायरें जी, प्रतम हित नवि लीध ।। ५ ।। ज ।।
को अनि दाधो घरणुजी, लोभ महोरग' दष्ट | मान ग्रस्यो माया कल्योजी, किम सेवुं परमेष्टि || ६ || ज. ॥
हित न कर्यों मैं परभवे जी, इह परण नवि सुख चूप । हे प्रभु अम शत भव कथाजी, केवल पूरण रूप ||७||ज ।।
Jain Educationa International
२- नरेन्द्रों, देवेन्द्रों से पूजित है पैर जिनके
१- मुक्ति मंगल और क्रीड़ा के घर हो ३ - सर्वज्ञ ४ - विपुल ज्ञान सम्पदा के भण्डार ५-संसार रूपी रोग ६-समय पाकर ७- प्रभु को प्राज्ञा
८ - जलमा
ह-अजगर
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org