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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष
जे लोकोत्तर देव, नमूं लौकिकथी । दुर्लभ सिद्ध स्वभाव, प्रभो तहकीकथी ।।४।।
महाविदेह मझार के, तारक जिन वरु । श्रीवज्रधर परिहन्त, अनन्त गुणाकरु ॥
ते निर्यामक श्रेष्ठ, सही मुझ तारसे । महावैद्य गुणयोग, रोग भव वारशे ॥५॥
प्रभु मुख भव्य स्वभाव, सुणू जो माहरो । तो पामे प्रमोद, एह चेतन खरो ॥
थाय शिव पद आश राशि सुखवृन्दनी । सहज स्वतन्त्र स्वरुप, .. खाण पाणंदनी ॥६॥ .
वलग्या जे प्रभु नाम, धाम तेगुणतणा । धारो चेतनराम एह थिरवासना ।।
देवचन्द्र जिनचन्द्र, हृदय स्थिर थापजो । जिन आणायुत भक्ति, शक्ति मुझ प्रापजो ॥७॥
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