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स्वर्गीय गणिवर्य बुद्धिमुनिजी
न लगे इसका आप पूर्ण ध्यान रखते थे । अनेक ग्रन्थों का सम्पादन एवं संशोधन बड़े परिश्रमपूर्वक आपने किया था । खरतरगच्छ गुर्वावली के हिंदी अनुवाद का संशोधन कार्य जब आपको सौंपा गया तब ग्रन्थ के प्रत्येक शब्द और भाव को ठीक से समझ कर पंक्ति पंक्ति का आपने संशोधन किया । आपके सम्पादित एवं संशोधित ग्रंथों में प्रश्नोत्तरमञ्जरी, पिंडविशुद्धि, नवतत्व संवेदन, चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति, प्रतिक्रमण हेतुगर्भ, कल्पसूत्र संस्कृत टीका, आत्मप्रबोध, पुष्पमाला लघुवृत्ति आदि प्राकृत संस्कृत ग्रन्थों का तथा जिनकुशलसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि आदि ग्रन्थों के गुजराती अनुवाद के संशोधन में आपने काफी श्रम किया । सूत्रकृतांग सूत्र भाग १ - २ द्वादशपर्व कथा के अतिरिक्त जयसोमोपाध्याय के प्रश्नोत्तर चत्वारिंशत् शतक का सम्पादन एवं गुजराती अनुवाद बह ुत ही महत्वपूर्ण है । इस ग्रन्थ के सम्पादन के द्वारा तो आपने खरतरगच्छ की महान सेवा की है । । आपने और भी कई छोटे-मोटे ग्रन्थों का सम्पादन एवं संशोधन नाम और यश की कामना रहित हो कर किया । ऐसे महान मुनिवर्य का अभाव बहुत ही खटकता है। श्री जयानन्दमुनि जी आदि आपके शिष्य भी आशा है, अपने गुरुदेव का अनुकरण करने में गच्छ एवं शासन की सेवा करने का प्रयत्न करेंगे ।
स्वर्गीय गणिवर्य को श्रीमद् देवचन्द्र जी की रचनाओं के स्वाध्याय एवं प्रचार में विशेष रुचि थी। कई वर्ष पूर्व उन्होंने श्रीमद् देवचन्द्र जी की अप्रसिद्ध रचनाओं का संकलन करके एक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी । प्रस्तुत अष्ट-प्रवचन माता सज्झाय को हिन्दी अनुवाद सहित उनकी पवित्र स्मृति में प्रकाशित करवाया जा रहा है क्योंकि इसमें मुनिजीवन के जिस रहस्य को श्रीमद् देवचन्द्र जी अपूर्व शैली में प्रकाशित किया है, पूज्य बुद्धिमुनि जी का जीवन बहुत कुछ न्हीं आदर्शो से ओतप्रोत था ।
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