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________________ अष्ट प्रवचन माता सज्झाय १७--द्रव्य क्रिया तो निमित्त कारण के धर्म मां लीन पणे रहे• ते भावक्रिया छ आत्मा ने जे-जे अशे निरूपाधि पणुं थाइ ते अपूर्वलाभ माने। १८---द्वेषनी परणति ने निन्दे शुद्ध परणति रूप धर्म प्ररूपइ, अष्टांग योग अन्य तेहना परमार्थ प्रकाश करें ते मुनि कर्म ने टाले। १९...किरिया थोड़ी करे पण ज्ञानवाला मु नि लोक ने उपगार करे तेथी मोक्ष साधइ एहवा देव मां चन्द्र तुल्य गीतार्थ मुनि ना समूह ने वन्दतां जिन नाम कर्म बांधइ कृष्णनी परइ ।। * कलश* १...ते प्राणी संसार तर्या, जे जैन मत अङ्गीकार कर्या, जे सुविहित मुनि ज्ञान अमृत रसना समुद्र थई ने किरिया करें ते संसार तर्या । २–ब्रह्मचर्य रूप बख्तर थकी जे पाखर्या छ । ... ३...आत्मानन्द के ज्ञान आणंदे भर्या के पांच आश्रवना द्वार घणाले ते समस्त ढांक्या के प्रधान संवर भावे संवर्या के एहवा । ४...ज्ञान धर्म अने तप धर्म पणे ध्यान मां वस्या एहवा । ५...विनय गुण रत्न ना समुद्र तत्शिष्य श्री देवचन्द्र जी पण्डित बहुश्रुत पणुं पांमी ने साधुना गुण गाया ते थकी कर्म शत्रु ने शिथिल कर्या । ६...मेरु तुल्य रूड़ा जिनालये शोभित नगर मांहे प्रधान, गुण स्तुती। ७...हे चतुर्विध संघ मुनि गुण नी तुमे स्तवना करज्यो, जे थकी लीलागंत भरत सरीखा राजा थास्यो। ___---निर्मोही पणे शुद्ध ज्ञान तत्त्व साधना मां तत्पर इन्द्र सरिखा तीर्थकर नी आणाइ विचर्या ते थकी जस सम्पदा विस्तरी के जेहनी एहवा म नि ने गंदन स्तवना करतां परम मंगल ते मोक्ष सुख जे सदाय सुख ते प्रगटइ । इति श्री अष्ट प्रवचन माता स्वाध्याय ... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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