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________________ शिक्षा रूप सज्झाय ७-सामायक आदे ५ चारित्र नी गुण श्रेणिइ चढ़ते भावे रमता त्रण्य लोक थी न्यारा, त्रण्य लोक मां पूजनीक जेहना चरणकमल छ । ८--पोते अधिक गुणी छ, पोता सरिरवा गुणी जे मुनि ते सार्थे मलता छ परमसमाधि ना निधान भवसमुद्व ना तारण पडें तरण जिहाज तुल्य छ। ६--समकितनंत छ संयम गुण ना ईच्छक ते संयम धरवा असमर्थ एहवा, त्रीजा संवेगपक्षी मुनि पक्ष भावे शोभता छ शुद्ध स्वरूपक छ। १०--पोतानी प्रशंस्याइ माचे नहीं, एक मुनि गुणे राचे के पणते संवेग पक्षी थका अप्रमत्त मुनि गीतार्थ नइ सिद्धान्त ना रहस्य, पूछवा सारू सेवा करइ छइ । ११---आगम नी सद्दहणा अनुमोदना सहित, गुणकारी संयमनी चालि शुद्ध व्यवहार थी साचवें आगल लाभ धारी ने। १२...एहवा गीतारथ मुनी ते दुक्करकार जे महातपस्वी तथा अभिन्नही तथा सियलगंता ते थकी अधिका कह्या छ वृहत्कल्पें तथा व्यवहार सूत्रे उपदेश माला तथा भगवती सूत्रे गीतार्थ ना अधिकार । . १३...भाव थी संयम थानक फरस्या बिना चारित्र धर्म न कहीइ, जे प्रवचन नरे रहस्य जाणे ते जूठ वचन बोले नहीं। १४...लोक मां जस शोभा सारू पोता नो मत थापवा ने; लोक रीझवण सारू ज्ञान भणे क्रिया करें उन विहारे ते मुनि न कहिइ ! १५-एकान्ते बाह्य थी दया नो उपदेश दये बहुश्रुतपणु न होइ, अलप ज्ञाने करी बगध्याने मूर्ख लोक ने ठगता फ़रे छ । ते घणो संसार भमस्ये दीन ते रांक पणु पामस्ये। १६...अध्यात्म नी परिणतिइ क्रिया कांड करस्य देश काल जोइनें उचित आधार पालें, जिन आज्ञा विराधे नहीं तेहनो अवतार धन्य छ। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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