SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ - आयाणभंड निक्षेपना समिति की सझाय १ - चौथी समिती चारगति टालनारी प्रभुइ कही, परमदयाल मुनि ग्रही, ज्ञान ठकुराईइ चाखी छई । २ - एवीए समिति छे ते हे सहज संवेगी मुनि ! तमो ए मांहे सदा रेहज्यों, आत्म साधन माटें ए संवर नुं आराधन छें, भव समुद्र तरवा नावा छें । ३ – जे आत्म तत्व ना वंछक हस्यें, ते सिद्धान्त ने साखी करीने सर्व परीग्नह संग ने दूर करीनें ध्यान नी वांछा वाला हज्यो । ४ - पांच आश्रव त्याग ए संवर पांच नी ए भावना छे, निरुपाधी पणु, अप्रमादी पणु परीग्रह त्याग असंगीपणे रहेव ं ए व्यवहार छे । ५ —— जे परभाव रूप पुद्गल रूप १४ उपगरण छे ते मुनी स्यामा राखे छे शरीर नो मोह नथी, कोई कालें लोभ नथी रत्नत्रयी संपदा वाला मुनि छें । ६- तेनो उत्तर लखे छे आत्म अहिंसक करवा सारू द्रव्य थी जीवदया पालवासारू १४ उपगरण धरे छइ संयम योग ने समाधि राखवा सारू ७ -मोक्ष साधन नुं मूल ज्ञान छें, तेहनुं हेतु सज्झाय ध्यान छे मा एषणा नां १० दोष जोइ ने जतनाई पात्र मां वोहरी ने सज्झाय ध्यान करवा आहार करई । ८ -- बालक योवनावत पुरुष स्त्रीयो मुनि ने नग़न देखी दुगंछा करें मांटे मुनि चोलपट राखें अने शुद्ध धर्म उपदेशें । ९ - डांस मसा सीत उष्ण ए परीसहें ध्यान मां समाधिना रहें माटें मुर्छा - रहित पण कपड़ा कॉबली धरे निराबाध पणें । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy