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एषणा समिती सज्झाय
७-शान देह थी आ शरीर छे ते आहार थी बलवंत रहें, साध्य जे मुक्ति पद ते अधुरे कारणे मुनि आहार तजे नहीं।
-देह अनुयाई वीर्य तैनो कर्ता आहार तेनो संयोग ते लेवो, ते वृद्धना हाथ मां लाकड़ी रूप जाणी ने आहारादिक भोग मां लावें।
-ज्यां सुधी क्रिया ज्ञान साधकता मां पीड़ा न उपजें त्यां सूधी आहार लीइं नहीं, अने क्षुधा उदयें बाधकपणु थाइ ते परणती टालवा सारू मुनि आहार करें।
१०-द्रव्य ना के० आहार ना ४७ दोष तजी ने नीरागपणे जोइ विचारी ने मूर्छा विना भमरा परें आहार ली।
११-तत्व रुचि; तत्व नुंघर, तत्व रसिया मुनि वेदनी ना उदये आहार लीई पण ते ज्ञानी मुनी कष्ट वैतरु जांण - १२-कदाचित् आहार न मलें तो पण घणी निर्जरा माने, कदापि आहार पामें तो ते मांहें व्यापें नहीं, माचे नहीं एहवा मोटा मुनि।
१३-इम अणाहारी पदनी साधना करता समसारूप अमृत नो कंद पाप ने भेदता उपशम योगी एहवा मुनी तेहनें इंद्र वंदे छे ।
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