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प्रशस्ति
भावार्थ खरतर गच्छ की आचार परम्परा को पालन करने वाले, गुणों से महान, राजसागर नाम के उपाध्याय हुये। उनके शिष्य श्री ज्ञानधर्म नामक उपाध्याय भी श्रुत रहस्य के साग़र तप और ध्यान से युक्त हुये।--४ । दीपचन्द्र पाठक पद धरिया, विनय रयण सागरिया जी। देवचन्द्र मुनिगुण उच्चरिया, कर्म अरि निर्जरिया जी । ५ ते ।
भावार्थ-उनके बाद श्री दीपचन्द्र नामक उपाध्याय विनय रूपी गुण के सागर हुये। उनके शिष्य श्री देवचन्द्र ने इन समझायों की रचना द्वारा मुनि गुणों की स्तुति करते हुये कर्मों की निर्जरा की ।-५ सुरगिरि सुंदर जिनवर मंदिर, शोभित नगर सवाई जी। नवानगर चोमास करीने, मुनिवर गुण स्तुति गाई जी ।६।ते।
भावार्थ ----मेरुगिरी के तुल्य उंचाईवाले तथा उसके समान सुन्दर जिन मन्दिरों से शोभित नवानगर ( जामनगर ) में चौमासा किया, तब यह मुनि गुणों की स्तवना बनाई ॥ ६ ॥ मुनिगुण माला गुणे विशाला, गावो ढाल रसाला जी। चोविह संघ समण गुण थुणतां,थास्यो लील भूवाला जीते।
भावार्थ-मुनियों के गुणों की विशाल माला के सदृश सरस ढाल को गाओ । हे चतुर्विधसंघ ! तुम मुनियों के गुणों को स्तवना करो जिससे आत्म सम्पति के भोक्ता-अधिपति बनोगे। कलश-इम द्रव्य भावे सुमति सुमता गुप्ति गुप्ता मुनिवरा ।
निर्मोह निर्मल शुद्ध चिद्धन तत्व साधन सत्यरा ।
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