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" प्रशस्ति”
"कलश"
तेतरिया रे भाई ते तरिया, जे जिन शासन अनुसरिया जी । जेहकरे सुविहितमुनि किरिया, ज्ञानामृतरसदरियाजी - तेतरिया |१|
भावार्थ-वे संसार समुद्र से तरगये । भाई ! वे ही तर गये । जिन्होंने जिन शासन का अनुसरण किया । जो वर्तमान ज्ञानामृत रूपी रस के समुद्र, सुविहित ( भले ) मुनि जनोचित क्रिया करने वाले तर गये । - १ विषय कषाय सहु परिहरिया, उत्तम समता वरिया जी । शील सन्नाह थकी पाखरिया, भव समुद्र जल तरिया जी | २ते |
भावार्थ- पांच इन्द्रियों के २३ विषयों तथा क्रोध कषायों को छोड़कर उत्तम समता को वरने वाले, मोह और काम को जीतने वाले, ब्रह्मचर्य का वख्तर पहनने वाले, मुनि भवसमुद्र से तर गये । २ समिति गुप्ति सूँ जे परवरिया, आत्मानन्दे भरिया जी । अव द्वार सकल आवरिया, वर संवर संवरिया जी । ३ ते० ।
भावार्थ--पांच समिति और तीन गुप्ति से सहित, आत्मानंद में मग्न, पांच आश्रव द्वारों को रोकने वाले, पांच संवरों से सहित मुनि तर गये । - ३ खरतर मुनि आचरणा चरिया, राजसागर गुण गिरुआ जी । ज्ञानधर्म तप ध्याने वरिया* श्रुत रहस्य ना दरिया जी |४|
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