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________________ स्वर्गीय गणिवर्य बुद्धिमुनिजी होते हुए भी भुजकच्छ के संभवनाथ जिनालय को अंजनशलाका और प्रतिष्ठा उपाध्याय जी के सान्निध्य में करवाई फिर पालीताना पधारे और सिद्धगिरि पर स्थित दादाजी के चरणपादुकाओं को प्रतिष्ठा और जिनदत्तसूरि सेवा संघ के अधिवेशन में सम्मिलित हुए व श्री गुलाबमुनिजी काफी दिनों से अस्वस्थ थे। आपने उनकी सेवा में कोई कसर नहीं रखी, पर उनकी आयुष्य की समाप्ति का अवसर प्रा चका था। अत: सं० २०१७ वैसाख सुदी १० महावीर केवलज्ञान तिथि के दिन गुलाबमुनिजी स्वर्गस्थ हो गये। आपका स्वास्थ्य पहले से ही नरम चल रहा था और काफी अक्ति आ गई थी। तलहटी तक जाने में भी आप थकजाते थे। पर सं० २०१८ के मिगसर से स्वास्थ और भी गिरने लगा और वैद्यों के दवा से भी कोई फायदा नहीं हुआ तो आप को डोली में विहार करके हवा-पानी बदलने के लिए अन्यत्र चलने को कहा गया। पर आपने यही कहा कि मैं डोली में बैठकर कभी विहार नहीं करूंगा। फाल्गुन महीने से ज्वर भी काफी रहने लगा । और वैद्यों ने आपको श्रम करने का मना कर दिया । पर आप ज्वर में भी अपने अधूर' कामों को पूरा करनेलिखने आदि में लगे रहते थे। चिकित्सक को आपने यही उत्तर दिया कि यह तो मेरी रुचि का विषय है, लिखना बंद कर देने पर तो और भी बीमार पड़ जाऊँगा । वैद्यों की दवा से लाभ होता न देखकर आपसे डाक्टरी इलाज करने का अनुरोध किया गया, तो आपने कहा कि मैं कोई प्रवाही दवा-इन्जेक्शनमिक्सचर आदि नहीं लूँगा। तुम लोग आग्रह करते हो तो फिर सूखी दवा ले सकता हूं। दो तीन महीने दवा लो भी; पर कोई फायदा नहीं हुआ । तब श्री प्रतापमल जी सेठिया और अचरतलाल शिवलाल ने बम्बई से एक कुशल वैद्य को भेजा । पर असाता वेदनीय कर्मोदय से कोई भी दवा लागू नहीं पड़ी। आप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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