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________________ भाषा समिति की ढाल १६ भावार्थ... पहले सूत्र और अर्थ के अनुयोग से, दूसरे नियुक्ति से मिश्रित अनुयोग से तथा तीसरे भाष्य, टीका, चूर्णि आदि के अनुयोग ( व्याख्यान ) से मुनि तत्वों का प्रतिपादन करे ॥ १० ॥ ज्ञान समुद्र समता भय, संवरी दया तत्वानन्द आस्वादता, वंदिये चरण गुणधार रे॥११॥ सा० शब्दार्थ... आस्वादता -- चखते हुये । वंदिये - - नमस्कार करिये । चरण – चारित्र भावार्थ - ऐसे तत्वानन्द का आस्वादन करने वाले, ज्ञान के सागर, समताधारी, संवर और दया के भण्डार, चारित्र के गुणवाले मुनियों को वन्दना करिये ॥ मोह उदये अमोही जेहवा, शुद्ध निज साध्य लयलीन रे । 'देवचन्द्र' तेह मुनि वन्दिये, ज्ञानामृत रस पीन रे ॥ १२॥ सा० शब्दार्थ... अमोही जिस्मा वीतराग के समान । लयलीन मन । ज्ञानामृत रस पीन... ज्ञान रूपी अमृत रस से पुष्ट । ते--वे । भावार्थ - यद्यपि सूक्ष्म मोह का क्षय तो बारहवें गुणस्थान में होता है । परन्तु अमोही के तुल्य अर्थात् वीतरागता के सम्मुख दृष्टिवाले, ज्ञानामृत रूपी से पुष्ट, अपने शुद्ध साध्य में लीन, मुनियों को वन्दना करने को श्रीमद् देवचन्द्र जी महाराज कहते हैं तथा स्वयं देवचन्द्र जी उन्हें वन्दना करते हैं ॥१२॥ इति भाषा समिति स्वाध्याय । रस Jain Educationa International भण्डार रे । · --- For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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