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अष्ट प्रवचन माता सज्झाय
भावार्थ:-मुनि आश्रव का गेह अर्थात् पापकारिणी; छेदकारिणी, भेदकारिणी, पीडाकारिणी, मर्म प्रकाशकारिणी, वाणी कभी न बोले। इसके उपरान्त ऐसी सच्ची बात भी न कहे, जिससे किसी को आघात पहुचे। श्री दशवकालिक सूत्र के सातवें अध्ययन में कहा है कि "सच्चा वि सा न वत्तव्वा,ज़ओ पावस्स आगमो" तथा "तहेव काणं काणित्ति तेणं चोरित्ति नो वए" अर्थात् जिससे पाप का आगमन हो, वह सच भी न बोले । जैसे-चोर को ओ चोर; काणो को ओ बे काणे ! कह कर न बोले । वह जो भी कुछ बोले, वह ज्ञान ध्यानके आचरणकरनेका उपदेश देता हुआ बोले और उसमें भी मधुरता, निपुणता, अल्पता,निरवद्यता,निरहकारिता और अतुच्छता रही हुई हों। वह भी योग्यायोग्यकी परीक्षा करके उचित समय पर व धर्मोपदेश देना अच्छा है ॥३॥ . उदित पर्याप्ति जे वचन नी, ते करी श्रृत अनुसार रे । बोध प्राग्भाव सज्झाय थी, वलि करे जगत उपकार रे॥४॥
शब्दार्थ...उदित == उदय में आई हुई । पर्याप्ति= पौद्गलिक रचना । श्रुत=ज्ञान । प्राग भाव-प्रगटपना वली=और । ___भावार्थ-नाम कर्म जन्य भाषा पर्याप्ति द्वारा जो कर्म इकट्ठे किये हुए हैं। उनके उदय से जो भाषा के पुद्गल ग्रहण होते हैं,उन्हें श्रुत के अनुसार बना करके मुनि ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त ज्ञान द्वारा जगत का उपकार करे। स्वाध्याय द्वारा ज्ञान वृद्धि करने के लिये और अन्य जीवोंके कल्याणार्थ के लिये उपदेश-व्याख्यान के लिये ही मनि बोले ॥४॥ योग जे आश्रव पद हतो, ते कर्यो निर्जरा रूप रे । लोह थी कांचनमुनिकरे,साधतासाध्य चिदरूपरे॥५॥मा०सा० शब्दार्थ...आश्रव पद = पुण्य पाप के बंध का स्थान । हतो था। साधता= साधतेहुये। साध्य =मोक्ष । चिद्रूप =ज्ञान स्वरूप ।
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