SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ढाल १ पहली 'ईर्या समिति की " प्रथम गोवालिया तणे भवे जी" ए देशी... प्रथम अहिंसक व्रत तणी जीरे, उत्तम भावना एह । संवर कारण उपदिशि जी रे, समता रस गुण गेह । मुनीश्वर ! इरियासमिति संभार । आश्रव कर तनु योगनी जी रे,दुष्ट चपलता वार । मुनीश्वर-१ शब्दार्थ...एह=यह । उपदिशी = कही । गुणगेह = गुणों का घर । संभार= संभालो। आश्रव कर पुण्य या पाप का बंध करने वाला। तनु योग =काया योग। चपलता= चंचलता। वार = हटा । ___ भावार्थ-(गुण अवगुण के स्वरूप का प्रतिपादन और गुण ग्रहणव करने का आदेश तथा अवगुण को छोड़ने का उपदेश एक कुशल कवि का परिचय देता है।) इर्या समिति, प्रथम-अहिंसा-महाव्रतकी उत्तम भावना है और संवरका कारण है। इसलिये समता-रस रूपी गुणों के आगर ! हे मुनीश्वर ! इर्यासमिति की साधना करो । काय योग की चपलता को दुष्ट आश्रवका कारण समझकर उसका निवारण करो-१ काय गुप्ति उत्सर्गनीजी रे, प्रथम समिति अपवाद । इरिया ते जे चालबुजी रे, धरी आगम विधिवाद-२ मु० शब्दार्थ...इरिया पहली समिति का नाम। चालवु =चलना। धरी= धारण करके । आगम विधिवाद =शास्त्रों की आज्ञा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003829
Book TitleAsht Pravachanmata Sazzay Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy