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[ जैन कथा संग्रह
श्रीपाल ने धवल सैठ पर बड़ी कृपा की, किन्तु धवल सेठ के मन में से जहर दूर नहीं हुआ था । उन्होंने कहीं से एक पालतू चन्दनगोह प्राप्त की और रात्रि के समय उसकी पूंछ में रस्सी बांधकर उसे श्रीपाल के महल की दीवार पर फेंकी। वह गोह लोहे की कील की तरह दृढ़ होकर वहीं चिपक गई । अब धवल सेठ ने उस रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना आरम्भ किया। पर जब वे आधी दूर पहुँचे, तो हाथ में से वह डोरी खिसक गई, जिसके कारण वे धम से पत्थर पर आ गिरे, और तत्क्षण उनके प्राण पखेरू उड़ गये ।
धवल सेठ की सारी सम्पत्ति उनके मित्रों को सौंप दी गई । ( ८ )
राजा की एक कुमारी ने यह प्रतिज्ञा कर रखी थी, कि मैं अपना विवाह उसो पुरुष से करूँगी, जो मुझे वीणा बजाने में हरा दे । श्रीपाल ने उसे वीणा बजाने में जीत कर, उसके साथ विवाह कर लिया । एक अद्भुत रूप वाली राजकुमारी ने अपना स्वयंवर रचवाया था । श्रीपाल वहां पहुँचे। उस कन्या ने वरमाला उन्हीं के गले में डाल वर लिया ।
एक राजा की लड़की ने यह निश्चय किया था, कि अमुक दोहे की पूर्ति करने वाले मनुष्य के साथ मैं अपना विवाह करूंगी ! उस दोहे की पूर्ति श्रीपाल ने करके उस कन्या से अपना विवाह कर लिया ।
एक राजा की कन्या को जहरी साँप का विष चढ़ा था। श्रीपाल ने जहर दूर कर दिया, अतः राजा ने प्रसन्न होकर यह कन्या उन्हें ही विवाह दी।
एक जगह उस व्यक्ति के साथ कन्या का विवाह करना तय हुआ था, जो राधावेध साधे । श्रीपाल ने राधावेध साधा और उस कन्या से भो अपना विवाह कर लिया ।
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