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________________ [ जैन कथा संग्रह सेठ ने हुक्म दिया कि - " बब्बरकोट बन्दरगाह पर जहाजों के लंगर डाल दिये जावें ।" ८६ ] जहाज बब्बरकोट पर ठहरे । वहाँ राजा के सिपाहियों ने महसूल माँगा । धबल सेठ ने कहा - " महसूल काहे का ?" हमें यहाँ कौनसा व्यापार करना है जो तुम्हें महसूल दें ?" इस बात पर बड़ी तकरार हुई किन्तु धबल सेठ न माने । अब तो राजा ने सेना भेजी, जिसने आकर धबल सेठ को पकड़ लिया और एक वृक्ष से उल्टा लटका दिया । श्रीपाल ने सोचा, कि - " सेठ ने यह बुरा काम किया । जो महसूल नहीं दिया । अब ये जान से मारे जायेंगे, साथ ही सब जहाज भी जब्त हो जायेंगे ।" यों सोचकर, लश्कर के सामने आ उसे ललकारते हुए बोले- कि "खबरदार, धबल सेठ का बाल भी अगर छू लिया, तो खैरियत मत समझना । अभी तुम लोगों ने श्रीपाल का मजा नहीं चखा है ।" यों कहकर, वे सेना की तरफ झपटे । भारी युद्ध मचगया, किन्तु श्रीपाल के शरीर में उस विद्या के प्रभाव से चोट ही न पहुँची थी। इधर सेना के मनुष्य धड़ाधड़ जमीन पर गिरने लगे । थोड़ी ही देर में तो सारा लश्कर छिन्न-भिन्न हो गया । श्रीपाल ने धबन सेठ को छुड़ा दिया । धवल सेठ ने अपना जीवन बचाने के बदले में आधे जहाज श्रीपाल को दे दिये । रकोट के राजा को जब इस पराक्रमी - पुरुष का पता चला, तो उसने इनका बड़ा स्वागत किया और अपनी कन्या श्रीपाल को विवाह दी । जब धबल सेठ ने श्रीपाल से कहा कि"श्रीपाल जी, रत्नद्वीप अभी बहुत दूर है और यहां रुकने से नुकसान होगा । अतः शीघ्र ही विदाई लीजिये ।" श्रीपाल ने अपनी स्त्री के साथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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