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[ जैन कथा संग्रह और बड़ा आदर-सत्कार करके उन्हें रहने के लिये अलग राजमहल दिया।
एकबार श्रीपाल कुवर घोड़े पर बैठकर गांव में घूमने निकले । वहां एक मनुष्य ने उंगली का इशारा करके कहा कि-"ये घोड़े पर बैठकर राजा के जमाई जा रहे हैं ।" श्रीपाल ने ये शब्द सुने कि उनके हृदय में यह विचार आया
उत्तम निज गुण से सुने, मध्यम बाप गुणेन । अधम ख्यात मामा गुणे, अधमाधम ससुरेण ।
अर्थात् -जो अपने गुणों के कारण पहुँचाने जाते हैं, वे उत्तम पुरुष हैं । जो पिता के गुणों के कारण पहुंचाने जाते हैं वे मध्यम पुरुष हैं । जो मामा के गुणों के कारण मशहूर होते हैं वे अधम हैं और जो ससुराल के नाम से पहिचाने जाते हैं, वे अधम से भी अधम यानि सबसे गिरे हुए माने जाते हैं।
"मुझे धिक्कार है कि मैं सुसराल के नाम से पहिचाना जाता हूँ । अच्छा, अब मुझे ससुर के गांव में न रहना चाहिये ।" यों सोचकर के घर आये, और माता तथा स्त्री से इजाजत मांगी। कि-"परदेश जाकर मैं धन कमाऊँगा और उसके बल से अपना राज्य वापस लौटाऊँगा, अतः आप लोग स्वीकृति दोजिये।" माता और स्त्री को यह बात भला अच्छी क्यों लगती ? किन्तु सब बातें अपनी इच्छा के अनुसार ही कब होती हैं ? एक वर्ष में वापस लौट आने का वायदा करके श्रीपाल कुमार चल दिये।
ग्राम नगर और नदी-नलों को पार करते हुए वे एक पहाड़ के पास पहुंचे। वहाँ जंगल में एक व्यक्ति विद्या की साधना कर रहा था।उस एक अच्छे मनुष्य की आवश्यकता थी जो उसकी आराधना में
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