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[ जैन कथा संग्रह इस कम्बख्त को क्या मिल गया ? अब तो जनता भो मुझे कपटी समझने लगी। और राजा भी धूर्त समझते हैं । इससे बदला न लूतो मैं भी ब्राह्मण कैसा ? इसी प्रकार विचार करते करते उसे एक उपाय सूझा । उसे मालूम हुआ कि श्रेयक का विवाह निकट है और इस शुभ अवसर पर राजा को भेंट देने के लिये शकडाल हथियार तैयार करा रहा है । उसने इस मौके से लाभ उठाने का निश्चय किया और गलियों में मारे मारे फिरने वाले बच्चों को मिठाई देकर उनसे कहा कि तुम इस दोहे को गाते फिरो। वे बच्चे गली गली पर यों गाते फिरने लगे
किसे खबर शकडाल क्या,करता छुप छुप काज । मारेगा नंदराय, को श्रेयक लेगा राज ।
राजा नन्द के कान में भी इस दोहे की भनक पड़ी। उसने सोचा जो बात गलीगलो में फैल रही है उसमें कुछ सचाई अवश्य होनी चाहिये । यह सोचकर उसने शकडाल को मार देने का निश्चय किया । उधर शकडाल को पता चला कि राजा उससे क्रोधित है और उसके परिवार को मार डालने की फिक्र में हैं। उसने श्रेयक से कहा-श्रेयक, कल जब मैं राजदरबार में जाकर राजा के सामने शिर झुकाऊँ तो तुम मेरी गर्दन काट देना। श्रेयक ने कहा-पिता जी आप क्या कह रहे हैं ? ऐसा तो कोई चांडाल भी न करेगा शकडाल ने कहा-श्रयक, जरा धीरज से काम लो । राजा को हमा ऊपर सन्देह हो गया है और वह क्रोध से वशीभूत होकर हमा समस्त कुटुम्ब को मटियामेट कर देगा। मेरा क्या है, मैं तो कब्र पैर लटकायें बैठा हूँ, कल नहीं तो चार दिन बाद इस संसार से बिद लूगा परन्तु तुम इस प्रकार राजा को स्वामिभक्ति का विश्वास दिल दोगे तो हमारे कुटुम्ब को आँच न आयेगी। मैं अपने गले में घाम विष रखूगा। जिससे मुझे कोई कष्ट न होगा।
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