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________________ ६४ ] [ जैन कथा संग्रह गये । भला मारवाड़ में इतना पानी कहां मिल सकता, कि गेहूँ और गन्ना पैदा किया जा सके । अब तो बेचारा खूब पछताया। इसी तरह मिली हई चीज खोकर, न मिलने योग्य चीज के लिए जो मेहनत करता है उसे अन्त में पछताने का मौका आता है। यह सुनकर जम्बूकुमार ने जवाब दिया कि मैं उस पर्वत के बन्दर की तरह नहीं हूँ, कि भूल करके बन्धन में पड़ जाऊँ।" प्रभव ने पूछा-कि "पर्वत के बन्दर की क्या कथा है ?" जम्बूकुमार कहने लगे-कि “एक पर्वत पर एक बूढ़ा बन्दर रहता था। वह बहुतसी बदरियों के साथ रहता और आनन्द करता। किन्तु एक दिन जवान बन्दर आया और उस बूढ़े बन्दर से उसकी लड़ाई होगई। इस लड़ाई में बूढ़ा बन्दर हार गया और भागा। जंगल में घूमते-घूमते उसे बड़ी प्यास लगी । उसी समय उसने शीलारस (एक प्रकार का चिकना पदार्थ ) झरते देखा। वह समझा, कि यह पानी है । अतः उसने उसमें मुह डाला, किन्तु वह तो उस रस में बिलकुल ही चिपक गया । अब क्या करे । अपना मुंह छुड़ाने के लिए उसने अपने दोनों हाथ उस रस पर दबाये। और मुंह को खींचने लगा। इस प्रयत्न से, उसका मुह उखड़ना तो दूर रहा, उल्टे उसके हाथ भी उसी पर चिपक गये। इसी तरह उसने अपने पैर उस पर रखे और वे भी चिपक गये । इस कारण, वह बेचारा दुःख भोगता हुआ मृत्यु को प्राप्त होगया। इसी तरह सारे सुख वैभव यानी ऐश आराम शीलारस की तरह हैं अतः इनसे चिपकने वाला अवश्य ही नष्ट हो जाता है। यह बात सुनकर एक स्त्री ने कहा-"स्वामीनाथ, आप अपना ग्रहण किया हुआ विचार दीक्षा लेने का छोड़ते तो नहीं हैं, किन्तु अन्त में गधे की पूछ पकड़ने बाले की तरह आपको दुखी होना पड़ेगा।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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