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जैन कथा संग्रह ]
सामने आया । प्रभव के पास दो विद्यायें थीं। एक तो नींद डाल देने की, और दूसरी चाहे जैसे ताले खोल डालने की ।
वहाँ पहुँचते ही, उसने अपनी विद्याएँ अजमाई तत्क्षण ही सब नींद में पड़ गये और तिजोरियां के ताले टपाटप खुल गये । चोर लोगों ने, उनमें से इच्छानुसार धन लेकर गठ्ठरियां बांधलीं ।
ज्योंही वे धन की गट्टरियां लेकर बाहर निकलने लगे, त्योंही उन सबके एकाएक पैर रुक गये । प्रभव चारों तरफ देखने लगा । यह क्या ? वहां उसने जम्बूकुमार को जागते देखा । यह देखकर वह बड़ा विचार में पड़ गया । और सोचने लगा, कि - " इसे नींद क्यों नहीं आई ।"
जम्बूकुमार का मन बड़ा मजबूत था । इसी कारण उन पर प्रभव की विद्या का कोई, प्रभाव न हुआ। जिस समय चोर लोग चोरी कर रहे थे, तब वे विचार कर रहे थे- 'मुझे धन पर कुछ भी मोह नहीं है, किन्तु यदि आज बड़ी चोरी होगई और कल ही मैं दीक्षा लुगा तो लोग मुझे क्या कहेंगे ? यही न कि सब धन चोरी चला गया, अत: दीक्षा ले ली ।" इसलिए चोर लोगों को ज्यों का त्यों तो कदापि न जाने देना चाहिए। "यह सोचकर उन्होंने पवित्र नये मंत्र का जप किया, जिसके प्रभाव से सब चोर जहाँ के तहाँ खड़े रह गये ।
अब तो प्रभव घबराया और हाथ जोड़कर बोला- "श्रेष्ठी कुमार जी, मुझे प्राणदान दीजिए। यदि आप हमें यहां से पकड़कर राजा के दरवार में पेश करेगें, तो कौणिक राजा हमें जान से मरवा डालेंगे । लीजिए मैं आपको अपनी दो विद्यायें देता हूँ, इनके बदले में आप मुझे प्राणदान दीजिए । और अपनी स्तंभनी विद्या (जहाँ का तहाँ रोक देने वाली विद्या ) भी दीजिए ।
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