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जैन कथा संग्रह ]
बोली-"हा महाराज ! मैं तैयार हूँ। अभयकुमार को जीवित. ही पकड़ कर आपके सामने हाजिर कर दूंगी।"
उस वेश्या ने अपने साथ दो दासियां ली, और राजगृही में आकर एक श्राविका बन कर रहने लगी । अहा, ऐपी मिष्ठ बनकर रहने लगी, कि देखने वाले को उसकी धार्मिकता पर पूरा विश्वास हो जाता था। प्रतिदिन बड़े ठाठ-बाट से भगवान की पूजा करती, व्रत, उपवास करती और सारे दिन धर्मचर्या करती रहती।
एकबार अभयकुमार मंदिर में पूजा करने गए। वहां उन्होंने इस श्राविका की भक्ति देखी तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा-- "बहिन तुम कौन हो, और कहाँ से आई हो ?" वह वेश्या बोली-''भाई मैं उज्जैन की रहने वालो हैं, मेरा नाम भद्रा है । मेरे पति का देहान्त होगया है, लड़के थे वे भी मर गए, इसलिए दोनों बहुओं को लेकर मैं यात्रा करने निकली हूँ। किए हुये कर्मों को भोगे बिना कैसे छुट्टी मिल सकती है ?"
अभयकुमार ने कहा-"बहिन, आप आज मेरे यहां भोजन कीजिएगा।"
भद्रा-"किन्तु आज तो मेरे उपवास है ।" अभयकुमार-"तो कल पारणा मेरे यहाँ कीजियेगा।"
भद्रा ने यह बात स्वीकार कर ली। पारणा इन्हीं के यहां किया । दूसरे दिन उसने अभयकुमार को निमन्त्रण दिया । अभयकुमार ने भी उसे स्वीकार कर लिया और उसके यहाँ भाजन करने गये। उस कपटो श्राविका ने उन्हें बड़े प्रेम से भोजन करवाया। किन्तु भोजन में उसने बेहोशी को दवा मिला दो थो, अतः अभपकुमार बेहोश हो गये। उस समय उस धूतिनो ने रस्सी से कुनार को बाँध लिया और रथ में डाल कर उज्जन चल दी।
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