SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्दनबाला ] [ २३ ये योगीराज थे कौन ? ये थे-महायोगी प्रभु महावीर ! इसी समय चन्दनबाला की बेड़ियां टूट गई । सिर पर सुन्दर बाल हो आये। सारी प्रकृति में एक सुन्दर आनन्द सा छा गया। सेठ जब लुहार के यहां से वापस लौटे, तो चन्दनबाला को पहले ही की तरह देखकर बड़े प्रसन्न हुए। मूला सेठानी जो उस समय लोट आई थीं, यह देखकर बड़े विचार में पड़ गई। चन्दनबाला ने माता-पिता दोनों ही को प्रणाम किया और फिर मूला माता से कहने लगी-"माताजी ! आपका मुझ पर बड़ा उपकार है। तीनों लोकों के स्वामी प्रभु महावीर का मेरे हाथ से पारणा हुआ, यह आप ही की कृपा का फल है।" नगर के लोगों को जब बात मालूम हुई, तब वे झुण्ड के झुण्ड वहाँ आने लगे। राजा-रानी भी वहाँ आये और चन्दनबाला को धन्यवाद देने लगे। जिस समय सब लोग धन्यवाद की वर्षा कर रहे थे उसी समय एक सिपाही आकर चन्दनबाला के पैरों पर गिर पड़ा और रोने लगा। लोगों ने उससे पूछा-"अरे ! आनन्द के समय तू रोता क्यों है ?" उसने कहा-'भाइयो! यह तो राजकुमारी वसुमती है। चम्पानगरी के राजा दधिवाहन की धारिणी नामक रानी की यह कन्या है । कहाँ इसका वह वैभव और कहाँ आज यह गुलामी की हालत ! मैं इनका सेवक था। जब चम्पानगरी नाश की गई तब शतानिक राजा मुझे पकड़ लाये, जिससे मुझे बड़ा दुःख पहुँचा किन्तु इस राजकुमारी के दुःख के सामने मेरा वह दुःख किस गिनती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy