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१७ पैथड़कुमार नीमाड़ प्रदेश के नांदूरी नामक ग्राम में पेथड़कुमार नामक एक श्रावक रहते थे । इनके पिता देदाशाह बड़े मालदार थे। किन्तु ज्योंही उनकी मृत्यु हई, त्योंही सब धन धीरे-धीरे नष्ट हो गया, जिससे पेथड़कुमार बड़ी बुरी दशा में आ पड़े। इस समय उन्हें न तो पेट भरकर भोजन ही मिलता था और न पहनने को ठीक कपड़े हो । ज्यों-त्यों करके वे अपना गुजर करते थे। इनके पद्मिनी नामक एक स्त्री थी, और झांझण नामक एक पुत्र । ये तीनों ही बड़े भले और धर्म के बड़े प्रेमी थे।
एक बार ग्राम में कोई विद्वान-मुनिराज पधारे, अतः सब लोग उनका उपदेश सुनने को गये, साथ ही पेथड़कुमार भी गये। वहां मुनि-महाराज ने अमृत के समान मीठी-वाणी से पवित्र-जीवन जीने की कला व धर्म-मार्ग समझाते हुए कहा ब्रह्मचर्य का पालन करो, सन्तोष धारण करो, तप से शरीर तथा मन पर संयम प्राप्त करो, भगवान की भक्ति से हृदय को पवित्र बनाओ-आदि । इस उपदेश का बहुत लोगों पर प्रभाव हुआ। किसी ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया, किसी ने एक सीमा तक सम्पत्ति रखकर शेष अच्छे कामों में खर्च कर डालने का व्रत लिया, किसी ने तप करने का व्रत लिया और किसी ने अपनी शक्ति व इच्छानुसार और-और व्रत लिये। उस समय बेचारे पेथड़कुमार अपने दुखो-जीवन का विचार करते हुए बैठे रहे ।
फटे कपड़ों से बैठे हुए पेथड़कुमार को देखकर कुछ मसखरों ने कहा, कि-"गुरु महाराज ! यह पेथड़ तो रह ही गया। इसे
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