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जैन कथा संग्रह
और देखते ही क्रोध व मान शान्त हो गया। उनका तेज ही सहन न कर सके । थोड़ी देर तक एकटक देखने के पश्चात् वह आगे बढ़े। प्रभु महावीर ने मधुर स्वर में कहा-गौतम आओ। गौतम सोचने लगे, इन्हें मेरे नाम को खबर कैसे हई। पर इसमें आश्चर्य की क्या बात है; मेरे जैसे बड़े आचार्य का नाम कौन नहीं जानता ?
अब गौतम सोचने लगा कि ये सर्वज्ञ होंगे तो मेरो शंका का समाधान अवश्य ही करेंगे । गौतम अद्वितीय विद्वान था, परन्तु उसके मन एक शंका बनी हुई थी और वह यह कि जीव की सत्ता है या नहीं। प्रभु महावीर ने उनकी शंका का समाधान किया। इससे उनके हृदय पर प्रभु महावीर का अद्भुत प्रभाव पड़ा। उनका गर्व जाता रहा । वे बोले-प्रभु ! मैं आपकी शरण में हूँ। मैं मूर्ख आपकी परीक्षा लेने आया था, परन्तु मेरी ही परीक्षा हो गई। भगवन् कृपा करके सत्य धर्म समझाइए।
प्रभु महावीर ने उन्हें सत्यधर्म का ज्ञान कराया और वे अपने शिष्यों सहित प्रभु के त्यागी शिष्य बन गये। इन्हीं इन्द्रभूति गौतम का नाम आगे जाकर श्रीगणधर गौतम स्वामी पड़ा । इनके बहुत से शिष्य थे। इसीसे वे गणधर कहलाये। थोड़ी देर बाद अन्य आचार्य भी आये और उन्होंने भी गौतम के समान विजित होकर शिष्यों सहित दीक्षा लेली।
(४)
गौतम अद्वितीय विद्वान् थे, परन्तु उन्हें अभी तक आत्मा आदि का पूर्ण ज्ञान नहीं हुआ था। उन्हें किसी-किसी विषय में शंकायें उत्पन्न होती थीं, तब वे नम्रता पूर्वक महावीर स्वामी के समाने निवेदन करते और प्रभ उनका यथोचित समाधान कर देते थे । अपनी समझ की कमी के कारण यदि एकबार में कोई बात पूरी समझ में नहीं आती थी,
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