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________________ १२० ] [ जैन कथा संग्रह बोले. कि-गुरुदेव, आप जो भी आज्ञा दें, वह करने को मैं तैयार हूँ। गुरुजी ने कहा, कि-"आबू के समान सुन्दर पहाड़ पर एक भी जैनमन्दिर नहीं हैं।" अतः वहा भव्य जैन मन्दिर तैयार करवाओ।" विमलशाह ने यह बात स्वीकार कर ली। विमलशाह मन्दिर बनवाने के लिए कुटुम्ब सहित आबू पहाड़ पर आये । उस समय आबू पर ब्राह्मणों का बड़ा जोर था । शिवमन्दिर आदि वहाँ इतने अधिक बने हुए थे, कि सिर्फ उनकी पूजा करने वाले पुजारी ही ११००० रहते थे । विमलशाह ने वहाँ पहुँचकर मन्दिर के लिये जगह मांगी। किन्तु पुजारियों ने जगह देने से साफ इनकार कर दिया। विमलशाह ने उन्हें खूब समझाया। पुजारियों ने कहा, कि-"यदि आपको यहां पर जगह की आवश्यकता ही हो तो जितनी जमीन चाहते हैं, उस पर सोने के सिक्के बिछवाकर हमें देदो और उतनी ही जमीन आप लेलो।" विमलशाह ने यह बात स्वीकार करली ओर सोने के सिक्के बिछाकर जमीन खरीद ली। जमीन प्राप्त कर चूकने पर उन्होंने सारे देश में से छाँट-छाँट कर कारीगर बूलवाये और संगमरमर की खान में से संगमरमर पत्थर निकलवा कर, हाथियों पर लाद-लाद कर आबू पहाड़ पर लाने लगे । विमलशाह के हृदय में उत्तमोत्तम मन्दिर बनाने की भावना थी, अतः उन्होंने शिलावट लोगों से कहा, कि-"तुम लोग अपनी सारी कला इस काम में लगा देना । पत्थर में नकाशी खोदते हुए जितना चूरा गिरेगा मैं उतनी ही चांदी तुम्हें दूंगा।" दो हजार कारीगरों ने १४ वर्ष तक काम किया। १८ करोड़ और तीस लाख रुपये के खर्च से एक भव्य जैन मन्दिर तैयार हुआ । जिसमें श्री ऋषभदेव भगवान की मूर्ति स्थापित की गई। वह मन्दिर आज भी आबू पहाड़ पर शोभा दे रहा है। संसार में इसकी कारीगरी का कोई मुकाबला नहीं हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003828
Book TitleJain Granth Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Agarchand Nahta
PublisherPushya Swarna Gyanpith Jaipur
Publication Year1978
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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