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[ जैन कथा संग्रह
बाकी निकलते हुये ५६ करोड़ रुपये दे दीजिये या नया ऋण स्वीकृति पत्र लिख दीजिये।" ।
__यह सुनकर, मन्त्री विमलशाह समझ गए, कि राजा कच्चे कान के हैं । वे दूसरों के बहकाने में लगे हैं। अतः ये मेरे विरुद्ध कोई भी कार्यवाही करें, उससे पहले ही उचित है कि मैं स्वयं ही चला जाऊँ।
यों सोचकर वहाँ से चलने की तैयारी की। सोलह सौ ऊटों पर सोना आदि सामान भरा और हाथी, ऊँट तथा रथ तैयार करवाये। पांच हजार घोड़े तथा रथ तैयार करवाये । पांच हजार घोड़े तथा दस हजार पैदल अपने साथ लिए। फिर भीमदेव से आज्ञा लेने गए। वहां से विदा होते समय, उन्होंने राजा से कहा कि"महाराज ! आपने मुझे जैसी परेशानी में डाला है वैसी परेशानी में कृपा करके और किसी को मत डालियेगा।"
विमल शाह मन्त्री अपना वैभव साथ लेकर आबू की तरफ चले । उन दिनों आन की तलहटी में चन्द्रावती नामक एक नगरी थी। वहाँ के राजा ने जब यह बात सुनी. कि विमल मन्त्री अपनी सेना सहित लेकर आ रहे हैं, तो वह नगर छोड़कर चला गया। विमल-मन्त्री अब वहां भीमदेव के सेनापति की तरह काम करने लगे।
यहाँ रहते हुए, उन्होंने बहुत सी विजय प्राप्त की। सिन्धदेश का राजा पंडिया बड़ा घमंडी हो गया था; अतः उसे बुरी तरह हरा दिया। परमार घंघुगदेव को, जो भीमदेव की आधीनता नहीं स्वीकार करता था-भीमदेव की महत्ता मानने को विवश किया।
विमलशाह ने अपने पराक्रम से विजय प्राप्त की और दोहाई राजा भीमदेव की फिरवाई । यह मालूम होने पर भीमदेव समझ
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