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श्री गणधर गौतम स्वामी
मगध देश में एक निर्मल नीर-वाहिनी नदी के किनारे सुन्दर वृक्ष-समूह फलों से लद रहा है। उन पर पक्षियों का मेला लगता है। बीच में एक छोटी सी फुलवारी है। फुलवारी क्या है, फूलों की खान है, सुगंधी का भण्डार है। उनकी शोभा अपार है। भ्रमरों की गुजार और चिड़ियों का चहचहाट मन को मुग्ध कर रही है । फुलवारी में छोटी-छोटी झुपड़ियां हैं । वे सादी होने पर भी सुव्यवस्थित हैं। हवनकूण्ड है। प्रातः सायं गगनव्यापी हवन-धूम्र से दशों दिशायें सुगन्धमय हो जाती हैं। पास ही एक गौशाला है, जिसमें भोली गायें और सुन्दर बछड़े आनन्द से रहते हैं। यहां इन्द्रभूति गौतम नामक एक विद्वान ब्राह्मण का गुरुकुल है।
प्राचीन काल में वर्तमान समय के जैसे स्कूल न थे। उस समय गुरुकुल होते थे। मां बाप अपने बच्चों को इन गुरुकुलों में पढ़ने के लिए भेजते थे। वे गुरू के पास रहते, वहीं खाते पीते और विद्याभ्यास करते थे। गुरु प्रेम पूर्वक पढ़ाते थे। उनके नजदीक गरीब और अमीर के बालकों में भेद न था। सब विद्यार्थी परस्पर प्रेम से रहते और गुरु के समीप विनय पूर्वक वरतते थे। विद्याभ्यास • समाप्त होने पर बड़े होकर वे गुरु की आज्ञा से अपने घर जाते थे। - इन्द्रभूति गौतम के गुरुकुल में पांचसौ विद्यार्थी थे। ये मगध
देश के गोबर नामक ग्राम के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम । बसुभूति और माता का पृथ्वी था । ये समस्त वेद शास्त्रों के ज्ञाता
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