SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साथ ही अपनी आत्म दशा का भी चिन्तवन जरूर करना चाहिये कि यह आत्मा परमोत्मके सदृश हो सत्ता या वस्तुस्थितिके दृष्टिसे हैं तथापि यह अन्तर जो कि महान पड़ गया है उसका कारण मेरी आत्मा की ही पर भावमें रमणता, आत्म विभात (पद) का भूलना हो है इसलिये प्रभुके दर्शन करके यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि आजसे आत्मोन्नति के मार्गमें लगूगा इस प्रकार नित्य विचार करे कि प्रभु ने जो बचन आत्मोन्नतिके लिये कहें हैं उनका अवलंवन कर मुझे भी परमात्म रुप बनने का अच्छा अवसर मिल गया है इसलिये हे आत्मन ! इस अपर्व अवसरको हाथसे व्यर्थ न खो निज गुण प्रगटने में लगा इत्यादि आत्माको नानाविध संबोधित सवाक्यों द्वारा प्रभुके गुणोंके ध्यानमें लगावे आत्म जाति बढ़ावे नित्य विधारे कि मैंने जो कल विचार प्रभु सन्मुख किये थे उनका पालन कहां तक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003826
Book TitleJinraj Bhakti Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanmal Shankardan Nahta
PublisherDanmal Shankardan Nahta
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy