SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०४ ) आदत डालनी चाहिये क्योंकि इच्छित फल की प्राप्ति तो भाव-पूजा ही से हो सकती है। यह सर्बदा ध्यान में रखना चाहिये। नवकार वाली वा अनानुपूर्वी गिनने का समावेश भी भावपूजा ही में होता है। भाव-पूजा करने में ऐसा तल्लीन हो जाना चाहिये कि जिससे परमात्माके साथ तदाकारपन हो जाय अर्थात परमात्मा में और पूजक में कोई भेद नहीं रह जाय एवं जिससे परमात्मा को अथवा अपनी ही आत्मा को जो बास्तवमें परमात्मा ही के स्वरूपवाली है, परम प्रसन्नता हो। भाव-पूजा कर रुप बा बेठ (बेगार) रूप नहीं होनी चाहिये, कितने ही तो द्रव्य-पूजा करके ही चलते बनते हैं, भाव-पूजा तो करते ही नहीं, उन्हें समझना चाहिये कि वे परम आवश्यकीय कर्तव्य तो करना ही भूलते हैं। ___ (३०) चैत्यवंदन अथवा भाव-पूजा किस लिये करनी चाहिये इसका निमित्त व हेतु 'अरिहंतचेइयाणं' में जैसा बताया गया है वैसा ही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003826
Book TitleJinraj Bhakti Adarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanmal Shankardan Nahta
PublisherDanmal Shankardan Nahta
Publication Year
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy