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(२४) प्रभु- पूजा के लिए सबंत्र दो वस्त्र रखने का विधान है। एक धोती और दूसरा उत्तरामन, मुखकोश उत्तरासन की छोरसे बना कर बांधा जाता है । आजकल मुखकोश ठीक आठ पुतवाला बांधा जाय इसलिए अलग रूमाल भी रखा जाता है । जिससे अष्टपुट करने पर मुख की गन्ध बाहिर न निकले ऐसा मुखकोश बांधना चाहिये । उत्तरासन एक ही वस्त्र का जिसमें किसी प्रकार का जोड़ (सान्ध) लगा हुआ न हो तथा दोनों ओर से किनारीदार हो ऐसा रखना चाहिए ।
(२५) द्रव्य - पूजा करनेके पश्चात भाव-पूजा करनेका अवसर प्राप्त होता है, द्रव्य पूजा अवग्रह के अन्दर रहकर की जाती है। क्योंकि उसमें प्रभुजीके अंग के साथ सम्बन्ध है । भाव- पूजा अवग्रह से बाहिर रहकर की जाती है । शास्त्रकारों ने अवग्रहका प्रमाण जघन्य नव ( ६ ) हाथ तथा उत्कृष्ट साठ (६०) हाथ बताया है, पर अभा
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