________________
४६
जिनचन्द्र की स्त्री का नाम चाहिणी था। चाहिणी की कुक्षी से एक पुत्री धाहिणी नामा और पांच पुत्र-क्रमश: देवचन्द्र, नामधर, महीधर, वीर धवल और भीमदेव हुए। श्रेष्ठि जिनचंद्र प्रतिदिन धर्म-कार्यों में ही रत रहता था। उसके उक्त चारों पुत्र
और पुत्री सर्व बड़े जिनेश्वर भक्त थे । ये 'तपा' विरुद के प्राप्त करने वाले श्री जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य श्री देवभद्रगरिण, विजय चन्द्रसूरि-एवं देवेन्द्र सूरि त्रिपुटी के अनन्य भक्त थे। ___ नायिकी के पुत्र धनेश्वर के दो स्त्रियां थीं-खेतू और धनश्री। अरिसिंह नामक इसके पुत्र था। प्रसिद्ध लाहड़ के लक्ष्मी श्री (लखमा) नामक स्त्री थी। लाहड़ ने कई धर्मकृत्य किये, जिनका परिचय आगे दिया जायगा । लाहड़ के कोई सन्तान नहीं थी।
जयदेव की स्त्री का नाम जाल्हणदेवी था। जाल्हणदेवी की कुक्षी से क्रमश: वीरदेव, देवकुमार और हालू नामक त्रयपुत्र रत्न हुए । इन तीनों की सुशीला स्त्रियां क्रमशः विजय श्री, देवश्री और हर्षिणी नामा थीं।
सहदेव की स्त्री सुहागदेवी की कुक्षी से प्रसिद्ध षेढ़ा और गोसल दो पुत्र उत्पन्न हुए। पेढ़ा की स्त्री खिन्वदेवी-वरदीवदेवी अथवा कीलषी नामा थी। इनके क्रमश: जेहड़, हेमचंद्र, कुमार१. अर्बुदप्राचीन जैन लेख सन्दोह-लेखांक ३५०, ३५५.
जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह पृ० २६ पृ० ३२. श्री प्रशस्ति संग्रह प्रथम भाग (ताड़ पत्रीय) ता० ५० ५० पृ०४४.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org