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________________ ४६ अनुभव होने पर पुनः कुछ विचार किया हो और पालीवाल ब्राह्मणों से व्रत अथवा प्रतिज्ञा भंग करने का साग्रह अनुरोध किया हो । ब्राह्मण' क्षरणेतुष्टा करणेरुस्टा; भी तो कहे गये हैं । राजा फिर जोधपुर जैसे बड़े एवं समृद्ध राज्य के नरेश के आग्रह को मान देकर समीप के भागों में जाकर बसे हुए ब्राह्मण पुन: पाली में कर बस गये हैं । तभी तो पाली में आज भी इन ब्राह्मणों के लग भग ५०० घर श्राबाद हैं और वे अपने प्रत्यावर्तन के हेतु में उपरोक्त आशय जैसी ही बात बतलाते हैं । 1 पालीवाल ब्राह्मण चुस्त वैष्णव हैं । ये अधिकतर कृष्ण के उपासक हैं जहाँ ये होंगे वहीं ठाकुर जी (कृष्ण जी ) का मंदिर अवश्य होगा । ये लोग भिक्षा नहीं माँगते । कृषि करते हैं और कोई कोई व्यापार करते हैं । इनमें एक दम निर्धन कोई देखा नहीं जाता। गांव में इनका अच्छा आदर रहता है। कुंआ खुदवाना, वापिका बनाना और मंदिर बनाना यह बहुत ऊंचा धर्म अथवा मानव सेवा का कार्य समझते हैं । परस्पर इनमें बड़ा मेल होता है | अपने निर्धन अथवा कर्महीन ज्ञाति बंधु की सहायता करना ये अपना परम सौभाग्य मानते हैं । कृषक पालीवाल ब्राह्मणों से राज्य भी प्राय: कर वसूल नहीं करते थे । इनके समृद्ध अथवा अर्थ की दृष्टि से कुछ कुछ ठीक होने का एक मुख्य कारण यह हो सकता है। इस पद्धति से ये सहज धीरे धीरे कुछ रकम जमाकर सकते थे और फिर व्यापार में भी भाग ले सकते थे । अतः ये स्वयं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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