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राम, खेमकरन और घासीराम भाई हो सकते हैं । तुलाराम खेमकरन का तृतीय पुत्र था । धनपति के दो पुत्र गुञ्जा और सोहिल थे । धनपति प्रतिष्ठित श्रीमन्त एवं जाति का नेता था । पल्लीवाल वैश्यों को पालीवाल ब्राह्मणों को १४०० टका ( उस समय के दो पैसा ) और १४०० सीधा सिद्धाहार जिसमें एक सेर आटा और उसी माप से दाल, घृत, मसाला देना होता था ।" यह दैनिक था अथवा तैथिक, पाक्षिक, मासिक, वार्षिक इस संबंध में कुछ ज्ञात नहीं हुआ । परन्तु जैसी राजस्थान में प्रथा है यह पाक्षिक होगा और अमावश्या और पूरिंगमा पर प्रत्येक मास दिया जाता होगा । यह लगान भारी थी । धनिपति ने समस्त पल्लीवाल ब्राह्मण कुलों को एकत्रित करके उक्त वृत्ति में कुछ न्यून करने का सुझाव रक्खा । पल्लीवाल ब्राह्मणों ने उक्त प्रस्ताव पर कुछ भी विचार करने से अस्वीकार किया और इस पर दोनों में भारी तनाव उत्पन्न हो गया । निदान धनपति साह के नायकत्व में पल्लीवाल वैश्य समाज ने पाली का त्याग करके चला जाने का निश्चय किया और वे पाली का त्याग करके मेवाड़, अजमेर, जयपुर, ग्वालियर, मोरेना की ओर चले गये और धीरे-धीरे सर्वत्र राजस्थान, मालवा मध्यप्रदेश, और संयुक्त प्रान्त में फैल गये । २
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(१) संख्या १४०० बतलाती है कि पल्लीवाल वैश्य घर १४०० थे । और आज की गणना से संगत ठहरता है । (२) एक स्थान पर पाली का त्याग सं० १६८१ में किया गया लिखा है ।
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