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________________ पल्लीवाल जैन इतिहास प्रभु-स्तुति सोमं स्वयंभुवं बुद्ध, नरकांत करं गुरुम् । भास्वन्तं शंकरं श्रीदं; प्रणौमि प्रयतो जिनम् || अर्थात - शान्ति के धारक और प्रल्हादकारी होने से जो साक्षात चन्द्र कहलाते हैं । बिना उपदेशक के स्वयं ज्ञान प्राप्त करने से जो स्वयंभू (ब्रह्मा) कहे जाते हैं । केवल ज्ञानी होने से जो बुद्ध कहलाते हैं । दूसरी कर्म प्रकृतियों के साथ नर्क नामक दैत्य को परास्त करने वाले होने से जो साक्षात विष्णु कहे जाते हैं । अलौकिक बुद्धिमान होने से जो बृहस्पति संभाषित होते हैं । केवल ज्ञान से लोकालोक को प्रकाशित करने के कारण जो सूर्य कहे जाते हैं । प्रसन्न भव्य को मुक्ति सुख प्रदान करने वाले होने से जो शंकर कहलाते हैं । स्वर्ग और मोक्ष की लक्ष्मी के देने वाले होने से जो कुबेर कहलाते हैं । ऐसे श्री जिनेन्द्रदेव की मैं मन वचन काया से पवित्र होकर स्तुति करता हूँ । सरस्वती वन्दना वाचस्पत्यादयो देवाः, स्व समीहित सिद्धये । यां नमन्ति सदा भक्त्या, तां बंदे हंसवाहिनीम् ॥ अर्थात- बृहस्पति श्रादि देवता भी इच्छित कार्य की सिद्धि के लिए भक्तिपूर्वक जिसको नमन करते हैं । उस हंसवाहिनी देवी की मैं वन्दना करता हूँ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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