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________________ १८५ स्पष्ट कादिता और धार्मिक प्रेम से प्रसन्न हो गये । इन्हें 'वागरा जैन गुरुकुल' में गृहपति बनाने का आदेश दे दिया। यह बड़ी लगन से काम करने लगे। साहित्य प्रम तो इनमें अटूट था, फिर यह कविता भी अच्छी करते थे । सरस्वती की कृपा से इनकी कविता ऐसी होने लगी जो श्रोताओं को मन्त्र मुग्ध कर देती थी यह देखकर प्राचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरि जी महाराज ने इन्हें आदेश दिया कि जिस प्रकार मैथिली शरण ने 'भारत-भारती' लिखी है तुम भी जैन समाज के लिये 'जैन जगती' तय्यार करो। आचार्य श्री की प्राज्ञा स्वीकार कर दौलतसिंह उर्फ अरविन्द' के नाम से इन्होंने बड़ी ही सुन्दर कविता तय्यार की। जैन समाज को प्रेरणा देने के लिए यह एक अनोखी कविता मानी जा सकती है। पुस्तक 'जैन जगती, जब छप कर सामने आई तो विद्वानों ने मुक्त कण्ठ से इसकी प्रशंसा की । फिर तो इनका दिल खुल गया और प्रति वर्ष एक नवीन प्रसून सरस्वती देवी को भेट करने लगे। ____ श्री अरविन्द' कवि और लेखक दोनों ही थे। श्री अगर चन्द्र जी नाहटा के शब्दों में 'श्री दौलत सिंह ‘अरविन्द' चहुंमुखी प्रतिभा सम्पन्न स्वाभिमानी तथा स्वाश्रयी थे । आचार्यश्री की कृपा और सरस्वती के भक्त होने के कारण इन्हे इतिहास और पुरातत्व में भी अच्छा ज्ञान प्राप्त होगया। 'राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ,' 'प्रागवाट इतिहास' और 'राणकपुरतीर्थ का इतिहास' आदि पुस्तकों के सम्पादन से आपकी योग्यता का परिचय भली प्रकार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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