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________________ जैन जातियों एवं वंशों की स्थापना (ले० श्री अगरचंदजो नाहटा ) यह तो सुनिश्चित है कि भगवान महावीर के समय में जैन जातियों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। सभी जाति के लोग जैन धर्मानुयायी थे। जैन आगम उत्तराध्ययन सूत्र से स्पष्ट है कि भगवान महावीर के समय जो वैदिक धर्म में जन्म से जाति का सम्बंध माना जाता था वह जैन धर्म को मान्य नहीं था ? गुणों से ही जाति को विशेषता जैन धर्म को मान्य थी। कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होते हैं । महाभारत और बौद्ध ग्रंथ भी इसका समर्थन करते हैं । ___ मध्यकाल में जैनाचार्यों ने बहुत सी जाति वालों को जैन धर्म का प्रतिबोध दिया तो उनमें जैन संस्कार वंश परम्परा से चलते रहे इसके लिए उनको स्वतंत्र जाति या वंश के रूप में प्रसिद्ध किया गया; क्योंकि वैदिक धर्मानुयायी प्रायः समस्त वर्णों वाले माँसाहारी थे, पशुओं का वलिदान करते थे और बहुत से ऐसे अभक्ष भक्षण आदि के संस्कार उनमें रुढ़ थे जो जैन धर्म के सर्वदा विपरीत थे। इसलिए जैनों का जातिगत संगठन करना आवश्यक हो गया। उनका नाम करण प्राय : उनके निवास स्थान पर ही आधारित था। जैसा कि १२॥ बारह ज्ञाति सम्बंधी पद्यों से स्पष्ट है ; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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