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संक्षिप्त कोष्टक इस लघु इतिहास में यथा प्रसंग दिया गया है । उससे ज्ञाति में पुरुष, स्त्री की संख्या, शिक्षा, वैवाहिक - अविवाहित, विधुर, विधवा एवं व्यवसाय और नौकरी आदि स्थितियों का विशद परिचय हो जाता है । आज उस बात को ४० वर्ष का समय व्यतीत हो गया । परन्तु, अन्य जैन ज्ञातियों के साथ अगर इस लघु जैन ज्ञाति का भाग्य भी बंधा हुआ माना जाय तो उनकी भांति अभी इस बैज्ञानिक एवं प्रोन्नति के युग ठेट ही बैठी हुई है । अपने संकुचित क्षेत्र से निकल नहीं पा रही है । ज्ञाति के आगेवानों पर इसकी उन्नति का उत्तरदायित्व है । वे सोचें समझें और मार्ग में पड़ी हुई विघ्न बाधाओं से झूझकर अपनी ज्ञाति को आगे बढ़ा ले चलें । इस लघ इतिहास के प्रकाशन का मुख्य हेतु यही है कि ज्ञाति अपने भूत और वर्तमान को पढ़ और समझें और भविष्य के प्रति जागरूक वनें और भारत की उन्नतशील ज्ञातियों से कंधा मिला कर आगे बढ़े !
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