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________________ अन्य ज्ञातियाँ संख्या में बढ़ी और यह ज्ञाति नहीं बढ़ी इस सम्बंध में एक बात जो उल्लेखनीय है वह यह है कि प्रोसवाल, श्रीमाल, पोरवाल जैसी ज्ञातियों का निर्माण कई शताब्दियों तक होता रहा और उनका बर्ग अधिकाधिक बढ़ता ही रहा । इन ज्ञातियों ने अपने प्रथम मूलस्थान को ही अपना रूढजन्मदाता नहीं माना । जो जैन बने और इनमें जो मिलना चाहते थे उनको इन्हों ने सहर्षस्वीकार किया एवं नगर अथवा ग्राम से इनका अाज का कलेवर नहीं बना है । सँभव है यह बात पल्लीवाल वैश्य ज्ञाति के निकट नहीं रही। जो पाली से जैनधर्मी बने वेही पल्लीवाल वैश्य जैन रहें और उनकी बढ़ती घटती सन्तानें ही आज का पल्लीवाल ज्ञाति का आकार वना पाई हैं और फलतः इसमें पश्चात् बनने वाले जैन कुलों का समावेश नहीं होने के कारण यह ज्ञाति छोटी रही और रह रही हैं । फिर भी सर्व जैन ज्ञातियों में इसका बराबरी का स्थान है और सम्मान हैं। अोसवाल, श्रीमाल, पौरवाल, बड़ी बड़ी ज्ञातियां हैं। इन ज्ञातियों ने अपने अपने कुलों को यथा शक्ति. यथावसर उन्नति करने में सहाय को है । श्रीमाल, पोरवालों का क्षेत्र गुर्जरभूमि बनी और यही कारण है कि श्रीमाल और पोरवाल गुर्जरभूमि में आज भी अधिक संख्या में हैं और ये ज्ञातियां वहाँ के राजधरों में, राज्यों में वर्चस्व रखती आई हैं । जो किसी भी इतिहासकार से अज्ञात नहीं है बल्कि यों कहा जा सकता है कि इन जैन ज्ञातियों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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