SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ उन्नीसवीं शताब्दी पर्यंत वीरमपुर समृद्ध एवं विशाल नगर रहा है। इस शताब्दी के अन्त में मालाशाह के एक वंशज नानक शाह ने राजकुमार के व्यवहार से रुष्ठ होकर वीरम पुर का त्याग करने का विचार किया। इस उद्देश्य की पूर्ति में उसने जैसलमेर तीर्थ के लिये एक संघ यात्रा करने का प्रायोजन रचा और उस बहाने वह २२०० जैन घर और ४००० जैनेतर घरों के परिवारों के सहित जैसलमेर तीर्थ की ओर चला और वे सर्व वहीं बस गये और लौटे नहीं। वीरमपुर की समृद्धि एवं शोभा इस संघ यात्रा के निष्काशन के साथ ही लुप्त हो गई और वीरमपुर कुछ ही वर्षों में उजड़ गया था । और फिर प्राबाद न हुअा। लेकिन तीर्थ के कारण आज भी वीरमपुर नाकोड़ा प्रसिद्ध है और कई सहस्त्र यात्रियों के प्रतिवर्ष के आवागमन के कारण अपनी पूर्व समृद्धि को चरितार्थ कर रहा है । इस तीर्थ की उन्नति एवं प्रसिद्धि में पल्लीवाल गच्छ और ज्ञाति दोनों का सराहनीय योग रहा है; यह ही विशेष उल्लेखनीय है। श्री कोरटा तीर्थ -इस तीर्थ पर भी पल्लीवाल बन्धुओं की सेवाओं के सम्बन्ध में विशेष सुना जाता है। परन्तु इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख प्राप्त नहीं हो सका है। श्री प्रवतीर्थ-इस तीर्थ के श्री नेमिनाथ नामक लूणसिंह वसही में दण्डनायक तेजपाल की तत्त्वावधानता में ही पल्लीवाल ज्ञातीय नेमड़ और उसके परिवार ने जो-जो शिल्पकार्य करवाये उनका विशुद्ध परिचय नेमड़ के प्रकरण में दिया जा चुका है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy