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________________ ११३ था। यह पुस्तक आज तक रीति- रश्मों के पालन-व्यवहार के उपयोग में आती है। पल्लीवाल ज्ञाति प्रापकी सदा चिरऋणी रहेगी। इसमें कोई सन्देह नहीं । आपका वंश आपके सद् प्रयत्न और मार्ग-दर्शन से जो उन्नति कर सका वह आपके नाम को कभी भी विस्मृत नहीं कर सकेगा । आप-माता-पिता के भी परम भक्त थे। पिता की सेवा तो आप अधिक नहीं कर सके, क्यों कि वे ५५ वर्ष की आयु में ही देह त्याग कर चुके, परन्तु आपकी माता ६० (नब्बे) वर्ष की आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुई थीं। आपने अपनी माता की एक सुपुत्रतुल्य सेवा करके शुभाशीर्वाद प्राप्त किये और उन्हीं प्राशीर्वाद से आपका जीवन महान् यशस्वी और उपयोगी बना। ___ सर्व श्री बालकराम, निहालचन्द्र, बुलाकीराम, नारायणलाल, लल्लू राम और बाबू छोटेलाल इसी कुल के सुशिक्षित, समाज प्रेमी एवं उत्साही व्यक्ति थे । धर्म वर्धनी क्लब की स्थापना के समय ये सर्वसज्जन आगरा में अध्ययन कर रहे थे और क्लब की स्थापना में इनका प्रमुख सहयोग एवं श्रम था। बरारा के इस शिक्षित कुल ने पल्लीवालज्ञाति को तन, मन, धन, से स्मरणीय सेवायें की हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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