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________________ : पुत्र की मृत्यु का बड़ा दुःख हुआ था। संसार से प्राप से तो पूर्व से ही रूठे हुए रहते ही थे, लघुपुत्र की मृत्यु से आपकी वैराग्य भावनाओं में और उदात्तपन बढ़ा । आप के द्वारा रचित पद्यों में संसार की असारता, मानव के दुःख-सुखों का चित्रण, उनसे निवारण पाने का प्रयास, मोक्ष की चाहना, जगत के मोहमयी सम्बंध की आलोचना आदि वैराग्य, उदासीन, विरक्त भावनाओं का सचोट चित्रण है । आप की रचनायें सरल, सुबोध भाषा में ऐसी आकर्षक व प्रभावक हैं कि भक्ति रस के हिन्दी - प्र जैन कवि सूर, कबीर सा० की कविताओं में जैसा आनन्द आता है वैसा ही इनकी कविताओं को पढ़कर भी पढ़नेवाला उनमें खो सा जाता है । Jain Educationa International १०५ आप अपनी आयु के अन्तिम दिवसों में दिल्लो आकर रहने लगे थे । परन्तु आप के पुत्र टीकाराम जी लश्कर में ही रहकर व्यापार करते थे । इससे यह ज्ञात होता है कि आप अकेले ही दिल्ली आकर रहने लगे थे। दिल्ली में आपने अपना समस्त समय तत्त्वचिन्तन, आत्मचिन्तन, शास्त्राभ्यास में ही व्यतीत किया। धर्म के तत्त्वों का मंथन करके प्रापने वि० सं० १८६१ में छहढाला की रचना की । यह ग्रंथ प्राध्यात्मिक दृष्टि से उच्च कोटि का कविता संग्रह ग्रंथ है। आपको अपने स्वदेह से तनिक भी मोह नहीं था । श्रापने अपनी समस्त शारीरिक शक्तियों का लाभ शास्त्रानुशीलन में ही व्ययशील रक्खा था । 'छह ढ़ाला, में मनेच्छाम्रों, चतुर्गति, अक्षरसुख को प्राप्त ज्ञान दर्शन, चारित्र इन त्रय 7 For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003825
Book TitlePallival Jain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherNandlal Jain Pallival Bharatpur
Publication Year1963
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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