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________________ साधु की पांच भावनायें भावार्थ-अभी भरतक्षेत्र में अंतिम तीर्थङ्कर श्री महावीर स्वामी का शासन पल रहा है, अत: श्री वीरप्रभु को नमस्कार करता हूँ। तदनन्तर श्री तीर्थङ्कर देवों प्रतिनिधि "अजिणा- जिण संकासा" कहे जाने वाले आचार्यों को नमस्कार करना उचित ही है ।दोहे के दूसरे चरण में श्री भद्रबाहु स्वामी को, तीसरे पाद में श्री जिनभद्र-गणो (क्षमाश्रमण ) को तथा चोथे चरण में श्रीक्षेमेन्द्रसूरि को मस्कार किया है ॥२॥ प्रस्तुत पांच भावना के वर्णन का आधार वृहत् कल्प सूत्र है उसके रचयिता भद्रबाहु स्वामी है और टोकाकार क्षेमेन्द्रसूरि हैं अतः उनको प्रारम्भ में नमस्कार किया गया है। सद्गुरु शासन-देव नमी, बृहत्कल्प अनुसार । शुद्ध भावना साधुनी, भाविश पंच प्रकार ॥३॥ भावार्थ उपयुक्त नाम निर्देश करने के बाद ग्रन्यकर्ता सोचते है, कि अब नाम की बजाय ऐसा शब्द लिखा जाय, ताकि सारे योग्य व्यक्तियों को नमन हो सके, इसलिए सद्गुरु-देव ( स=सच्चे गुरु-गौरवशाली ) को नमस्कार किया है चोवीस तीर्थङ्करों के चौवीस शासन देव होते हैं, अत: जैन शासन को रक्षा में सचेष्ट रहने वाले शासनदेवों को नमस्कार किया है । देव-गुरु-तथा शासनदेव को नमस्कार करके कवि कहते हैं, कि मैं :श्री वृहत्कल्पसूत्र के अनुसार साधु की “पांच प्रशस्त भावनाओं का वर्णन करूंगा-भादूंगा ॥३॥ इन्द्री-योग-कषाय ने, जीपे मुनि निःशंक । इण जीते कुध्यान जय, जाये चित्त तरंग ॥४॥ भावार्थ-निर्भयता के साथ मुनि अपने आंतरिक रितुओं को जीते। पांच इन्द्रियाँ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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