________________
योग्य थई देह त्यागे ते जीव धन्य छे" ॐ शान्ति" ___ क्षत्रियकुंड से श्री सुखलाल भाई का कार्ड (मिती माघ सुदी ४) आया जिसमें उन्होंने लिखा था:- "आपने भाई मनोहरलालजी के बारे में लिखा सो जान कर ऐसा मालूम होता है कि उनको भावना उत्तम थी। उसका प्रत्यक्ष साक्षात् पूज्यश्री को मालूम हुआ। वे पत्र पढ़ते थे। उसीसमय एक बिजली का पलकारा जैसा हुआ और गुरुदेव ने पास में बैठे हुए हम लोगों से कहा देखो एक रोशनी का पलकरा हुआ। जब हम लोगों ने ऐसा ख्याल किया कि वह आत्मा देवयोनि से यहां आकर पूज्यश्री के दर्शन करके चली गई। पूज्यश्रीने कहा कि भावना सुन्दर थी। . जब मनोहर का दुखद समाचार अजमेर स्थित श्रीचन्द्रप्रभाश्रीजी को मिले तो वे इस विकल्प में चिन्तित थे कि न मालम उसके मृत्यु के समय कैसे परिणाम रहे होंगे ! पर जब मेरा पत्र मिला तो उन्हें भी मनोहर के समाधि-मरण से सन्तोष हुआ । मितो माघ सुदी ३ के पत्र में श्रीचन्द्रप्रभाश्रीजी ने लिखा:
_ “मनोहरलालजी के समाचार जब से सुने थे, तब से हृदय में गहरी चोट लगी थी पर आपके पत्र ने मरहम-पट्टी का काम किया । युवावस्था के अन्दर इस प्रकार की उत्तम भावनाओं का होना धन्यवाद के योग्य है। आश्चर्य होता है कि उन्होंने एकदम ही जड़ और चेतन का भान किस तरह पाया। आपर्क पत्र के पूर्व येही विचार मस्तिष्क में घूमते रहे कि न मालूम किस प्रकार से देह छूटी होगी? क्या परिणाम रहे होंगे? बस इसी चीज का दुख होता था । पर आपके पत्र ने सब विचारों को दबा कर आत्मा को भी सन्तोष दिया। मरने के दुख से ज्यादा सुख, उनके ऐसे उच्च परिणामों से हुआ ।"
दूसरे रविवार को रात्रि ७॥ बजे जैन भवन के स्वाध्याय सभा में उसके समाधि-मरण और आत्म परिणामों के गुणानुवाद करने के पश्चात कुछ समय मौन रह कर स्वर्गीय आत्मा की शांतिकामना की गई।
भंवरलाल नाहटा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org