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________________ १०४ ढंढण मुनि सज्झाय मोदक सूजता मुनि ग्रही, चढते मन वैरागे रे धन० १७ जिन वंदीने पूछियो, त्रव्यो ते अंतरायो रे, नाथ कहे जदुनाथ ने, कारणथी तुम्हे पायो रे धन० १८ सांभली मुनि अति हरखीया, धन धन ए गुरुराजों रे, वीतराग उपगारिया, कृपा करी मुज आजो रे. धन० १६ साध्य अधुरे कुण करे, ए आहार असारो रे, पुद्गल जगनी एंठ ए, किमल्ये मुनि सुविचारो रे धन० २० साधन वधते आदरे, ए साधक व्यवहारो रे, निःकारण परवस्तु ने, छीपे नहीं अणगारो रे धन० २१ इम चिंतवी शुद्ध थंडिले, परठवतो ते पिंडो रे, पुदगल संगनी निंदना, निजगुण रमण प्रचण्डो रे धन० २२ पर परिणति विच्छेदतां, निज परिणति प्राग्भावो रे, क्षपकश्रेणि ध्याने रम्या, पाम्यो आत्म स्वभावो रे धन० २३ आतमतत्व एकाग्रता, तन्मय वीरज धारे रे, घन घाती सवि खरव्या, रत्नत्रयो विस्तारे रे धन० २४ क्षीणमोह करी चरणनी, क्षायिकता करी पूरी रे, केवलज्ञान दर्शन वर्या, अंतराय सवि चूरी रे धन० २५ परम दान लाभ नीपनो, कीधो कारज सुधो रे, समवसरण में आवीया, साध्य संपूरण सीधो रे. न० २६ एहवा मुनि ने गाइये, ध्याइयें धरी आणदो रे, देवचंद पद पाइये, लहिये परमानंदो रे. धन० २७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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