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________________ साधु समस्या द्वादश दोधक पर गुण से न्यारे रहे, निज गुण के आधीन | चक्रवर्त्तितैं अधिक सुखी, मुनिवर इह निज इह पर वस्तु की, जिने चक्रवत्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर जिणहुँ निज निज ज्ञान सूँ, ग्रहे चक्रवर्त्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन | ३ | दस विध धरम धरइ सदा, शुद्ध चक्रवर्त्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित ज्ञान परी कीन । | ४ | रहे ज्युं मीन । चारित लीन |५| समता सागर में सदा, झील चक्रवर्त्तिते अधिक सुखी, मुनिवर आशा न धरै काहू की, न कबहू पराधीन Į चक्रवर्त्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन | ६ | तप संयम पावस बसै, दहै प्रमाद दुख झीन । चक्रवर्त्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन |७| पुद्गल जीव की शक्ति सब, जात सप्त भय हीन । चक्रवर्त्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन |८| रहे, कीयो मोह मसकीन | सप्तम गुणथानक Jain Educationa International चारित लीन |१| परीख्या कीन । चारित लीन |२| परिख तत्व लीन । For Personal and Private Use Only लीन www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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