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________________ मनोहर ने अपना अध्ययन पूरा करके व्यापार में प्रवेश किया और करीमगंज की दोही मुसाफिरी में व्यापम की सारी सूक्ष्मताओं में अभिज्ञता प्राप्त कर ली । वहाँ उसने अल्प समय में बगला भाषा का ज्ञान प्राप्त किया और उसमें धारा प्रवाह से बातचीत करने लगा । उसका विनय व्यवहार अद्भुत था। बड़ों के चरणों को प्रतिदिन स्पर्श करे उनकी आज्ञानुसार आचरण करना उसका स्वभाव सिद्ध अभ्यास था । सं० २०१३ के मिती वैशाख बंदी ४ के दिन श्री फागुणचन्दजी पारख की पुत्री किरणदेवी के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ और १ || वर्ष के पश्चात् अपनी पत्नी को सौभाग्य सुख से वंचित कर सं० २०१४ के मिती माघ वदी १० की रात्रि में कलकत्ता के नीलरतन सरकार - अस्पताल में वह स्वर्गगामी हुआ । केवल २२ वर्ष की आयु में इस भव्यात्माका जिस तरह से देहविलय हुआ उसका संक्षिप्त संस्मरण नीचे दिया जा रहा है। मृत्यु के कुछ महीने पूर्व बीकानेर में अभय जैन ग्रंथालय की पुस्तकों की एक पारसल छुड़ाने के लिए वह स्टेशन गया और वापिस लौटते समय रांचडी चौक में साईकिल पर सवार होते हुए भी वहां एक कुत्तों ने मनोहर के पैर में काटलिया । चौक में रहने वालों में किसी को पता नहीं था कि कुत्ता पागल है। इसलिए उचित मल्हम - दवाई लगाने पर थोड़े समय में उसका पैर अच्छा हो गया । कुछ दिन पश्चात् उसके करीमगंज जाने की आवश्यकता हुई और रवाने हो गया - बदी रविवार का दिन था । मैं प्रातः काल गद्दी में आकर बैठा का1 करीब ८ बजे सिलचर का टेलीफोन आया । उसमें इन्द्रचन्द्र बोथरा ने कहा, "कि मनोहर बीमार है - करीमगंज से फोन आया है कि कल रातसे पानी देखकर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003824
Book TitlePanch Bhavnadi Sazzaya Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherBhanvarlal Nahta
Publication Year1964
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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