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उसकी मरहम पट्टी करवाए तो भविष्य में वह उससे किस तरह का व्यवहार करेगा, इस निर्भीक योद्धा ने उत्तर दिया था कि 'वैसा ही जैसा सुल्तान ने इम्मीर के प्रति किया है ।' अलाउद्दीन ने उसे हाथी के पैरों से कुचलवा डाला, किन्तु उसे अच्छी तरह दफनाने की आज्ञा दी । रतिपाल और रणमल्ल को बड़ी बड़ी आशाएं थीं । बादशाह ने उनकी खाल निकलवा कर स्वामिद्रोह का फल चखाया। स्वामिद्रोह को पनपने देना उसकी नीति के विरुद्ध था ।
उसमें कुछ
हम्मीर को हम सर्वगुणसम्पन्न तो नहीं मान सकते । जल्दबाजी थी। अमात्यों के चुनाव में भी उसने समय समय पर गल्तियां कीं उसके शासन प्रबन्ध में भी हम कुछ दोष देख सकते हैं । किन्तु जिस लगन से हिन्दू समाज ने उसके नाम को अमर रखा है उसी से सिद्ध है कि वह अनेक भारतीय आदर्शों का प्रतीक रहा है । विद्यापतिने उसे दयावीर के रूप में देखा | 'षड् भाषा-कविचक्र-शक' और 'प्रामाणिकाग्रेसर' राघवदेव जैसे विद्वानों के उसकी सभा में उपस्थित होने से यह भी सिद्ध है कि वह वैदुष्य- प्रिय था। कावलजी प्रशस्तिका रचयिता विद्यादित्य हम्मीर पुरोहित था। उसके कोटिमखों में हुआ होगा । हम्मीर उस चाहमान
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का पौराणिक और विश्वरूप उसका सहस्रों विद्वान् ब्राह्मणों का पूजन भी कुल का सुयोग्य प्रतिनिधि भी था जिसका दण्ड गो और वृष ( धर्म ) की
१. हम्मीर महाकाव्य, १४. २०.
२. बही, १४. २१.
३. वही, १४, २३.
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