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ठक्करफेरूविरचिता
खीरोवाहिसंभूयं विभूसणं सिरिनिहाण रायाणं । दाहिणवतं संखं बहुमंगलनिलयरिद्धिकरं ॥ २९ ॥ वट्टन्ति रेहकलियं पंचमुहं सुभ सोलसावतं । इय संखं विद्धिकरं संखिणि हुइ दीहहाणिकरा ॥ ३० ॥ सिरिकणय मेहलजुयं वरठाणे ठविय निच्च सुइ काउं । दुद्धि न्हविऊण चन्दणि कुसुमागरि मन्ति पूइज्जा ॥ ३१ ॥
पूजामन्त्रः
ॐ ह्रीं श्रीं श्रीधरकरस्थाय पयोनिधिजाताय लक्ष्मीसहोदराय चिंतितार्थ संप्रदाय श्रीदक्षिणावर्त्तसंखाय । ॐ ह्रीं श्रीं जिनपूजायै नमः ॥ इति पूजाविधिः ।
दाहिणवत्तो य संखोयं जस्स गेहमि चिह्न | मंगलाणि पवट्टन्ते तस्स लच्छी सयंवरा ॥ ३३ ॥ तस्संखि खिविय चंदणि तिलयं जो कुणइ पुहवि सो अजिओ । तरस न पहवइ किंची अहि- साइणि-विज्जु-अग्गि-अरी ॥ ३४ ॥ नरनाहगिहे संखं वुड्डिकरं रजि रट्ठ भण्डारे । इराण य रिद्धिकरं अंतिमजाईण हाणिकरं ॥ ३५ ॥ दाहिणवत्ते संखे खीरं जो पियइ कय कुलच्छी य । साझा विपसूवइ गुणलक्खणसंजयं पुत्तं ॥ ३६ ॥
इति दक्षिणावर्त्तसङ्घः ।
दीवंतरि सिवभूमी सिवरुक्खं तत्थ होन्ति रुद्दक्खा । एगाई जा [च] उद्दस वयणा सव्वे वि सुपवित्ता ॥ ३७ ॥ पर उत्तमे गवयणा सिरिनिलया विग्घनासणा सुहया । कणयजुय कण्ठ सवणे भुय सीसे संठिया सहला ॥ ३८ ॥
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