SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठक्कुरफेरूविरचिता पच्छा खुड्डइ खिवियं धमिज नीसरई सव्व मलकडं । जं हिढे रहइ दलं तं पुण कुट्टेवि धमियव्वं ॥९॥ तस्साउ वहइ पयरं तं तंबमिट्ठयं वियाणेह । वुड्डाणए पुणेवं गुटुं गुलियं तओ हवइ ॥१०॥ अथ सीसयं जहाना(न)गखाणीओ पाहण कड्डिवि कुट्टेवि पीसि धोइज्जा । जं होइ तं मलदलं दुभाय तइयंस लोहजुयं ॥११॥ सय सय पलस्स मूसी ते चाडिवि तीस अंगए इक्के । आवट्टिय तुल्लेणं चउत्थभागूण हुइ सीसं ॥१२॥ लोहं सारं च पुणो उप्पत्ती धाहुपाहणाओ य । पित्तल-कंसाईणं विणट्ठए होइ भिंगारी ॥ १३ ॥ अथ रंगयं जहारंगस्स धाहु कुट्टिवि करिज कोमंस चुण्ण सह पिंडं । धमिय निसरई जं तं पुण गालिय कविया होन्ति ॥१४॥ अथ कंसयं जहाकंबिय सेरक्कारस मणेग तम्बं च पयर गुटुं वा । आवट्ट घडिय सुद्धं कंसं हुइ वीसयंसूणं ॥ १५ ॥ अथ पारयं जहापारस्स धाहु ठवियं तस्सोवरि गोमयहकुढि कुज्जा । मंदग्गिधमियमाणो उड्डवि संचरइ तस्स महे ॥१६॥ अहवा रसकूव भणन्तेगे तरुणत्थी तत्थ करवि सिंगारं । तुरियारूढं झकिवि अपुट्ठपयरेहिं नस्सेइ ॥ १७ ॥ कुवाओ तस्स कए पारं उच्छलवि धावए पच्छा। बाहुडइ दहमकाओ पुणोवि निवडेइ. तत्थे व ॥१८॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy