________________
उडरफेरूविरचिताकक्कर सहिय अउत्ता जठरा जाणेह सव्व दोसगिहं । सज्जरसा मामिचू मरगइदोसाइं ताण फलं ॥ ७८ ॥ सुच्छायं सुसणिद्धं अणेरुयं तह लहुं च वन्नडूं । पंच गुणं विसहरणं मरगय मसराल लच्छिकरं ॥७९॥ सूराभिमुहं ठवियं कर उयरे मरगयमि चिंतिजा । विप्फुरइ जस्स छाया पुन्नपवित्ता धुरीणा सा ॥ ८० ॥
॥ इति मरकतमणिपरीक्षा समता ॥ अथ इन्द्रनीलम्सिंघलदीव समुब्भव महिंदनीला य चउ सुवन्ना य । छ दोस पंच गुणाहि य तहेव नव छाय जाणेह ।। ८१॥ सियनीलाभं विप्पं नीलारुण खत्तियं वियाणाहि । पीयाभनील वइसं घणणीलं हवइ तं सुद्धं ॥ ८२॥ अब्भय मंदि सकक्कर गब्भा सत्तास जठर पाहणिया । समल सगार विवन्ना इय नीले होति नव दोसा ॥ ८३ ॥ अब्भय दोस धणक्खय सकक्कर वाहिउ मंदिए कुटुं। " पाहणिए असिघायं भिन्नविवन्ने य सिंहभयं ॥ ८४॥ सत्तासे बंधुवहं समल सगारे य जठर मित्तखयं ।
नव दोसाणि फलाणि य महिंदनीलस्स भणियाइं ॥ ८५॥ . गुरुयं तह य सुरंगं सुसणिद्धं कोमलं सुरंजणयं ।
इय पंच गुणं नीलं धरति मणि कोव पसमंति ॥ ८६ ॥ नील घण मोरकंठ य अलसी गिरिकन्नकुसुमसंकासा । अलिपंखकसिण सामल कोइलगीवाभ नव छाया ॥ ८ ॥ हीरय चुन्निय माणिक मरगय नीलं च पंच रयणमयं । इय धरिए जं पुन्नं हवइ न तं कोडिदाणेण ॥ ८८॥
॥ इति इन्द्रनीलमहापंचरयणुच्चयं ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org