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________________ निदेशकीय राजस्थान पुरातन ग्रंथमाला के 60 वें पुष्प के रूप में आज से करीब 34 पूर्व ठक्कर फेरू विरचित “रत्नपरीक्षादि सप्त ग्रंथ संग्रह” का प्रकाशन किया गया था । इन सात लघु रचनाओं को ज्योतिषसार, द्रव्यपरीक्षा, वास्तुसार, रत्नपरीक्षा, धातूत्पत्ति, युगप्रधान चतुष्पदी एवं गणितसार नाम से जाना जाता है। जहां गणितसार और ज्योतिषसार संबंधित विषय के प्राथमिक ज्ञान हेतु उपयोगी हैं। वहीं द्रव्यपरीक्षा मध्यकालीन भारत में प्रचलित तत्कालीन विभिन्न प्रकार के सिक्कों और रत्न-परीक्षा तत्कालीन रत्नों के अध्ययन हेतु उपयोगी है । संक्षेप में ज्योतिष, गणित, वास्तुशास्त्र, रत्नशास्त्र और मुद्राशास्त्र पर प्रामाणिक लेखन इस रचनावली एक विशेषता है । इन कृतियों के प्रणेता ठक्कुर फेरू 14 वीं शताब्दी में सम्राट् अलाउद्दीन खिलजी के समय उसकी टकसाल के अधिकारी थे और उन्होंने तत्कालीन सिक्कों व रत्नों का वास्तव में अध्ययन कर इन रचनाओं का सृजन किया था । रत्नपरीक्षादि सप्त-ग्रंथ-संग्रह के पुनर्मुद्रण की विद्वज्जगत् में काफी समय से प्रतीक्षा की जा रही थी। आशा है पुस्तक के वर्तमान संस्करण से सुधीजन लाभान्वित होंगे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ओ. पी. सैनी I.A.S. निदेशक www.jainelibrary.org
SR No.003822
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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